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तुलसीदास के दोहे
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Kamlesh Singh
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तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान| भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह| तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए| अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक ।।
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग| सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण ||
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर | बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक| साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक | पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान| तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन| अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि | ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि | सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु | बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
तुलसीदास के दोहे